Afsar 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है;
हमारे शहर में पत्थर भी लाल होता है;

मैं शोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता;
जहाँ उरूज पर पहुँचो ज़वाल होता है;

मैं अपने बच्चों को कुछ भी तो दे नहीं पाया;
कभी-कभी मुझे ख़ुद भी मलाल होता है;

यहीं से अमन की तबलीग रोज़ होती है;
यहीं पे रोज़ कबूतर हलाल होता है;

मैं अपने आप को सय्यद तो लिख नहीं सकता;
अजान देने से कोई बिलाल होता है;

पड़ोसियों की दुकानें तक नहीं खुलतीं;
किसी का गाँव में जब इन्तिकाल होता है।

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