Afsar 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो
हम थे परेशाँ तुमसे ज्यादा,

चाक किये हैं हमने
अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज्यादा;

चाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है
आज तो दामन सिर्फ़ लहू है,

एक मौसम था हम को रहा है
शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज्यादा;

जाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर
सारी लवें शमों की कतर लो,

ज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत
जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज्यादा;

ज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी
तुमने तो "मजरूह" मगर हम,

कूचा-कूचा देख रहे हैं
आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज्यादा।

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