Afsar 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

न मंदिर में सनम होते,
न मस्जिद में खुदा होता,

हमीं से यह तमाशा है,
न हम होते तो क्या होता;

न ऐसी मंजिलें होतीं,
न ऐसा रास्ता होता,

संभल कर हम ज़रा चलते
तो आलम ज़ेरे-पा होता;

घटा छाती, बहार आती,
तुम्हारा तज़किरा होता,

फिर उसके बाद गुल खिलते
कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता;

बुलाकर तुमने महफ़िल में
हमको गैरों से उठवाया,

हमीं खुद उठ गए होते,
इशारा कर दिया होता;

तेरे अहबाब तुझसे मिल के
भी मायूस लौट गए,

तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी,
कुछ कहा होता।

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