न मंदिर में सनम होते,
न मस्जिद में खुदा होता,
हमीं से यह तमाशा है,
न हम होते तो क्या होता;
न ऐसी मंजिलें होतीं,
न ऐसा रास्ता होता,
संभल कर हम ज़रा चलते
तो आलम ज़ेरे-पा होता;
घटा छाती, बहार आती,
तुम्हारा तज़किरा होता,
फिर उसके बाद गुल खिलते
कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता;
बुलाकर तुमने महफ़िल में
हमको गैरों से उठवाया,
हमीं खुद उठ गए होते,
इशारा कर दिया होता;
तेरे अहबाब तुझसे मिल के
भी मायूस लौट गए,
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी,
कुछ कहा होता।
