Rakesh 12:00:00 AM 13 Jun, 2017

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों
जहाँ में इसकी मुश्किल है;

यहाँ परियों का मजमा है,
वहाँ हूरों की महफ़िल है;

इलाही कैसी-कैसी
सूरतें तूने बनाई हैं;

के हर सूरत कलेजे से लगा
लेने के क़ाबिल है;

ये दिल लेते ही शीशे की तरह
पत्थर पे दे मारा;

मैं कहता रह गया
ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल;

है जो देखा अक्स आईने में
अपना बोले झुंजलाकर;

अरे तू कौन है,
हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है;

हज़ारों दिल मसल कर
पांओ से झुंजला के फ़रमाया;

लो पहचानो तुम्हारा इन
दिलों में कौन सा दिल है।

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