Rakesh 12:00:00 AM 14 Jun, 2017

अभी इस तरफ़ न निगाह कर
मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ;

मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना
तुझे आईने में उतार लूँ;

मैं तमाम दिन का थका हुआ,
तू तमाम शब का जगा हुआ;

ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर,
तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ;

अगर आसमाँ की नुमाइशों में
मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो;

तो मैं मोतियों की दुकान से
तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ;

कई अजनबी तेरी राह के
मेरे पास से यूँ गुज़र गये;

जिन्हें देख कर ये तड़प हुई
तेरा नाम लेके पुकार लूँ।

Related to this Post: