देखा तो था यूं ही किसी ग़फ़लत-शिआर ने;
दीवाना कर दिया दिल-ए-बेइख़्तियार ने;
ऐ आरज़ू के धुंधले ख्वाबों जवाब दो;
फिर किसकी याद आई थी मुझको पुकारने;
तुमको ख़बर नहीं मगर इक सादालौह को;
बर्बाद कर दिया तेरे दो दिन के प्यार ने;
मैं और तुमसे तर्क-ए-मोहब्बत की आरज़ू;
दीवाना कर दिया है ग़म-ए-रोज़गार ने;
अब ऐ दिल-ए-तबाह तेरा क्या ख्याल है;
हम तो चले थे काकुल-ए-गेती सँवारने।
