तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ;
हुस्न-ए-यज़्दां से तुझे हुस्न-ए-बुतां तक देखूं;
तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था;
मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ;
सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें;
मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ;
वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये तेरे खद्द-ओ-खाल;
यूं तो मैं तूटते तारों का धुआं तक देखूँ;
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता;
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ;
एक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद;
हुस्न-ए-इन्सां से निपट लूं तो वहाँ तक देखूँ।
