Afsar 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला;
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला;

मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक;
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला;

बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं;
वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला;

उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर;
मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला;

एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए;
ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला।

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