arman 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

जहाँ में हाल मेरा इस क़दर ज़बून हुआ;
कि मुझ को देख के बिस्मिल को भी सुकून हुआ;

ग़रीब दिल ने बहुत आरज़ूएँ पैदा कीं;
मगर नसीब का लिक्खा कि सब का ख़ून हुआ;

वो अपने हुस्न से वाक़िफ़ मैं अपनी अक़्ल से सैर;
उन्हों ने होश सँभाला मुझे जुनून हुआ;

उम्मीद-ए-चश्म-ए-मुरव्वत कहाँ रही बाक़ी;
ज़रिया बातों का जब सिर्फ़ टेलीफ़ोन हुआ;

निगाह-ए-गर्म क्रिसमस में भी रही हम पर;
हमारे हक़ में दिसम्बर भी माह-ए-जून हुआ।

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