Rakesh 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

कौन कहता है कि
मौत आयी तो मर जाऊँगा;

मैं तो दरिया हूं,
समंदर में उतर जाऊँगा;

तेरा दर छोड़ के
मैं और किधर जाऊँगा;

घर में घिर जाऊँगा,
सहरा में बिखर जाऊँगा;

तेरे पहलू से जो उठूँगा
तो मुश्किल ये है;

सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा,
जिधर जाऊँगा;

अब तेरे शहर में आऊँगा
मुसाफ़िर की तरह;

साया-ए-अब्र की
मानिंद गुज़र जाऊँगा;

तेरा पैमान-ए-वफ़ा
राह की दीवार बना;

वरना सोचा था कि
जब चाहूँगा, मर जाऊँगा;

ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं
'नदीम';

बुझ तो जाऊँगा मगर,
सुबह तो कर जाऊँगा।

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