मुझ से काफ़िर को तेरे इश्क़ ने यूँ शरमाया;
दिल तुझे देख के धड़का तो खुदा याद आया;
मेरे दिल पे तो है अब तक तेरे ग़म का साया;
लोग कहते हैं नया दौर नए दुख लाया;
मेरा मियार-ए-वफ़ा ही मेरी मज़बूरी है;
रुख बदल कर भी तुझे अपने मुक़ाबिल पाया;
चारागर आज सितारों की क़सम खा के बता;
किस ने इंसान को तबस्सुम के लिए तड़पाया;
लोग हँसते तो इस सोच में खो जाता हूँ;
मौज-ए-सैलाब ने फिर किसका घरौंदा ढाया;
उसके अंदर कोई फनकार छुपा बैठा है;
जानते-बुझते जिस शख्स ने धोखा खाया।
