arman 12:00:00 AM 16 Jul, 2017

मुझ से काफ़िर को तेरे इश्क़ ने यूँ शरमाया;
दिल तुझे देख के धड़का तो खुदा याद आया;

मेरे दिल पे तो है अब तक तेरे ग़म का साया;
लोग कहते हैं नया दौर नए दुख लाया;

मेरा मियार-ए-वफ़ा ही मेरी मज़बूरी है;
रुख बदल कर भी तुझे अपने मुक़ाबिल पाया;

चारागर आज सितारों की क़सम खा के बता;
किस ने इंसान को तबस्सुम के लिए तड़पाया;

लोग हँसते तो इस सोच में खो जाता हूँ;
मौज-ए-सैलाब ने फिर किसका घरौंदा ढाया;

उसके अंदर कोई फनकार छुपा बैठा है;
जानते-बुझते जिस शख्स ने धोखा खाया।

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