arman 12:00:00 AM 16 Jul, 2017

टूटी है मेरी नींद, मगर तुमको इससे क्या;
बजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्या;

तुम मौज-मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते रहो;
कट जाएँ मेरी सोच के पर तुमको इससे क्या;

औरों का हाथ थामो, उन्हें रास्ता दिखाओ;
मैं भूल जाऊँ अपना ही घर, तुमको इससे क्या;

अब्र-ए-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़;
सीपी में बन न पाए गुहर, तुमको इससे क्या;

ले जाएँ मुझको माल-ए-ग़नीमत के साथ उदू;
तुमने तो डाल दी है सिपर, तुमको इससे क्या;

तुमने तो थक के दश्त में ख़ेमे लगा लिए;
तन्हा कटे किसी का सफ़र, तुमको इससे क्या।

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