Afsar 12:00:00 AM 16 Jun, 2017

मुमकिन है कि तु जिसको समझता है बहाराँ;
औरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ का;

है सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँ;
अए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ का;

शायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ की;
तु जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का।

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