Afsar 12:00:00 AM 16 Jun, 2017

क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला ;​​
​ ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला​;​​​

​ तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने​;​
तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला​;​

​ जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने​;​
बू​-​उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला​;​

​ तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर​;​​
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला​​।

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