Afsar 12:00:00 AM 17 Jul, 2017

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है;
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है;

इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं;
के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है;

ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा;
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल;

है जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर;
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है;

हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया;
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है।

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