Afsar 12:00:00 AM 17 Jul, 2017

आरजू की थी इक आशियाने की;
आंधियां चल पड़ी ज़माने की;

मेरे ग़म को कोई समझ ना पाया;
क्योंकि मुझे आदत थी मुस्कुराने की!

Related to this Post: