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Reena
12:00:00 AM 18 May, 2018
हमने देखी है दफ़न किसी की मुहब्बत जिसमें ,
लोग कहते हैं क्यूँ मुहब्बत की निशानी उसको |
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Related to this Post:
#10236 Aman
12:00:00 AM 17 Feb, 2017
भारत रत्न के हक़दार वो बुज़ुर्ग भी है..
जिन्होंने एक ही गाँव में पीपल के नीचे चारपाई पे बैठ के अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी
और डायलॉग मारते हैं....
"अरे हमें न सिखाओ,हमने पूरी दुनिया देखी है"
#20422 arman
12:00:00 AM 04 May, 2017
इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखी हैं बारातें अक्सर
#20602 Afsar
12:00:00 AM 05 May, 2017
इश्क़ रहज़न न सही इश्क़ के हाथों फिर भी
हमने लुटती हुई देखी हैं बारातें अक्सर
#27752 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो
हम थे परेशाँ तुमसे ज्यादा,
चाक किये हैं हमने
अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज्यादा;
चाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है
आज तो दामन सिर्फ़ लहू है,
एक मौसम था हम को रहा है
शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज्यादा;
जाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर
सारी लवें शमों की कतर लो,
ज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत
जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज्यादा;
ज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी
तुमने तो "मजरूह" मगर हम,
कूचा-कूचा देख रहे हैं
आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज्यादा।
#28966 Rakesh
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
देखी हैं कई महफिलें, ये फ़िज़ा कुछ और है;
देखे हैं जलवे बहुत, ये अदा कुछ और है;
पिए तो बहुत जाम हैं
हमने, पर आपका नशा कुछ और है।
#35256 Afsar
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
देखी हैं कई महफिलें,
ये फ़िज़ा कुछ और है;
देखे हैं जलवे बहुत,
ये अदा कुछ और है;
पिए तो बहुत जाम हैं हमने,
पर आपका नशा कुछ और है।
#35651 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
हम अपने हक़ से जियादा नज़र नहीं रखते
चिराग़ रखते हैं, शम्सो-क़मर नहीं रखते।
हमने रूहों पे जो दौलत की जकड़ देखी है
डर के मारे ये बला अपने घर नहीं रखते।
है नहीं कुछ भी प ग़ैरत प आँच आये तो
सबने देखा है के कोई कसर नहीं रखते।
इल्म रखते हैं कि इंसान को पहचान सकें
उनकी जेबों को भी नापें, हुनर नहीं रखते।
बराहे-रास्त बताते हैं इरादा अपना
मीठे लफ़्जों में छुपा कर ज़हर नहीं रखते।
हम पहर-पहर बिताते हैं ज़िन्दगी अपनी
अगली पीढ़ी के लिये मालो-ज़र नहीं रखते।
दिल में आये जो उसे कर गु़जरते हैं अक्सर
फ़िज़ूल बातों के अगरो-मगर नहीं रखते।
गो कि आकाश में उड़ते हैं परिंदे लेकिन
वो भी ताउम्र हवा में बसर नहीं रखते।
अपने कन्धों पे ही ढोते हैं ज़िन्दगी अपनी
किसी के शाने[3] पे घबरा के सर नहीं रखते।
कुछ ज़रूरी गुनाह होते हैं हमसे भी कभी
पर उसे शर्म से हम ढाँक कर नहीं रखते।
हर पड़ोसी की ख़बर रखते हैं कोशिश करके
रूसो-अमरीका की कोई ख़बर नहीं रखते।
हाँ ख़ुदा रखते हैं, करते हैं बन्दगी पैहम[4]
मकीने-दिल[5] के लिये और घर नहीं रखते।
घर फ़िराक़ और निराला का, है अक़बर का दियार
’अमित’ के शेर क्या कोई असर नहीं रखते।
#44809 Kapil
12:00:00 AM 27 Jan, 2018
एक अवार्ड उन बुजुर्गों को
जिन्होंने नीम के नीचे चारपाई पे अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी
और बोलते है..
हमे न सिखाओ, हमने पूरी दुनिया देखी है
😜😂
#47467 Reena
12:00:00 AM 30 May, 2018
ज़रूरी नहीं, कि नज़दीकियों में ही प्यार हो...
फ़ासलों में भी, इश्क़ की बुलंदियाँ देखी है हमने...!!