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Afsar
12:00:00 AM 19 Jun, 2017
वो वक़्त गुजर गया... जब मुझे तेरी आरज़ू थी,
अब तू खुदा भी बन जाए तो मैं सज़दा न करूँ।
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Related to this Post:
#1957 ADMIN
02:56:59 PM 12 Oct, 2016
चलो हंसने की कोई, हम वजह ढूंढते हैं,
जिधर न हो कोई ग़म, वो जगह ढूंढते हैं !
बहुत उड़ लिए ऊंचे आसमानों में यारो,
चलो जमीं पे ही कहीं, हम सतह ढूंढते हैं !
छूटा संग कितनों का ज़िंदगी की जंग में,
चलो उनके दिलों की, हम गिरह ढूंढते हैं !
बहुत वक़्त गुज़रा भटकते हुए अंधेरों में,
चलो अँधेरी रात की, हम सुबह ढूंढते हैं !!!
🙏 सुप्रभात🙏
🌿आप का दिन शुभ हो🌿
✍Apno Ki chaht✍
#10975 Aman
12:00:00 AM 17 Feb, 2017
"मेरे ख़्यालों की राहगुज़र से
वो गुज़रता रहा..
वक़्त का क्या है
वो गुज़रते गुज़रते गुज़रता रहा..
फासला रखने की हसरत
उसे इतनी परवान चढ़ी..
हर फ़ैसले पर वो अपनी
दीवार क़ी चाहत रखता रहा..
कई बार सोचा
उसकी बुनियाद का
पत्थर ही बन जाऊँ..
लेकिन
हर पत्थर पर
वो ठोकर अपनी रखता रहा..
मेरे ख़्यालों की रहगुज़र से
वो गुज़रता रहा..
वक़्त का क्या है
वो गुज़रते गुज़रते गुज़रता रहा.!"
#18254 Happy
12:00:00 AM 28 Mar, 2017
एक दादा और एक दादी ने अपनी जवानी के दिनों को ताज़ा और relive करने की सोची.
उन्होन्ने प्लान किया कि वो एक बार शादी से पहले के दिनों की तरह छुप कर नदी किनारे मिलेंगे.
.
.
.
दादा तैयार शैयार होकर, बांके स्टाइल वाला बाल संवार कर, लंबी टहनी वाला खूबसूरत लाल गुलाब हाथ में लेकर नदी किनारे की पुरानी जगह पहूंच गये. उनका उत्सुक इंतज़ार शुरू हो गया. ताज़ी ठंढी हवा बहुत रोमैंटिक लग रही थी.
.
.
.
.
.
एक घंटा गुजरा, दूसरा भी, यहां तक कि तीसरा भी . पर दादी दूर दूर तक नहीं दिखी.
दादा अपना सेलफोन भी नहीं ले गये थे क्यों कि उनके तब के वक्त में तो PCO भी नहीं होते थे. नदी किनारे तो नहीं ही.
.
.
.
दादा को फ़िक्र नहीं हुई, बहुत गुस्सा आया .
झल्लाते हुए घर पहुंचे …….
…….
…….
तो देखा
दादी
.कुर्सी पर बैठी मुस्करा रही थी.
.दादा, लाल पीले होते हुए
” तुम आयीं क्यों
नहीं ?”
दादी, शरमाते हुए.
.”मम्मी ने आने नहीं दिया.”
#21846 Rakesh
12:00:00 AM 12 May, 2017
चलो हंसने की कोई, हम वजह ढूंढते हैं,
जिधर न हो कोई ग़म, वो जगह ढूंढते हैं !
बहुत उड़ लिए ऊंचे आसमानों में यारो,
चलो जमीं पे ही कहीं, हम सतह ढूंढते हैं !
छूटा संग कितनों का ज़िंदगी की जंग में,
चलो उनके दिलों की, हम गिरह ढूंढते हैं !
बहुत वक़्त गुज़रा भटकते हुए अंधेरों में,
चलो अँधेरी रात की, हम सुबह ढूंढते हैं !!!
#22702 ADMIN
12:00:00 AM 23 May, 2017
चलो हंसने की कोई, हम वजह ढूंढते हैं,
जिधर न हो कोई ग़म, वो जगह ढूंढते हैं !
बहुत उड़ लिए ऊंचे आसमानों में यारो,
चलो जमीं पे ही कहीं, हम सतह ढूंढते हैं !
छूटा संग कितनों का ज़िंदगी की जंग में,
चलो उनके दिलों की, हम गिरह ढूंढते हैं !
बहुत वक़्त गुज़रा भटकते हुए अंधेरों में,
चलो अँधेरी रात की, हम सुबह ढूंढते हैं !!!
#26966 Afsar
12:00:00 AM 12 Jun, 2017
ज़मीन पर मेरा नाम वो लिखते और मिटाते हैं;
वक्त उनका तो गुजर जाता है, मिट्टी में हम मिल जाते हैं!
#29827 arman
12:00:00 AM 16 Jun, 2017
गुज़र गया वो वक़्त जब तेरे तलबगार थे हम;
अब खुद भी बन जाओ तो सजदा ना करेंगे।
#33153 Afsar
12:00:00 AM 21 Jun, 2017
ज़मीन पर मेरा नाम वो लिखते और मिटाते हैं;
वक्त उनका
तो गुजर जाता है, मिट्टी में हम मिल जाते हैं!
#36139 Afsar
12:00:00 AM 17 Jul, 2017
गुज़र गया वो वक़्त जब तेरे तलबगार थे हम;
अब खुद भी बन जाओ तो सजदा ना करेंगे।