इश्क़ की दुनिया में
इक हंगामा बरपा कर दिया;
ऐ ख़याल-ए-दोस्त ये क्या हो गया
क्या कर दिया;
ज़र्रे ज़र्रे ने मेरा अफ़्साना
सुन कर दाद दी;
मैंने वहशत में जहाँ
को तेरा शैदा कर दिया;
तूर पर राह-ए-वफ़ा में
बो दिए काँटे कलीम;
इश्क़ की वुसअत को मस्दूद-
ए-तक़ाज़ा कर दिया;
बिस्तर-ए-मशरिक़ से
सूरज ने उठाया अपना सर;
किस ने ये महफ़िल में
ज़िक्र-ए-हुस्न-ए-यक्ता कर दिया;
मुद्दा-ए-दिल कहूँ '
एहसान' किस उम्मीद पर;
वो जो चाहेंगे करेंगे
और जो चाहा कर दिया।
