Rakesh 12:00:00 AM 14 Jun, 2017

बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगा;
महमिल-ए-दिल से निकल सर को हवा ताज़ा लगा;

देख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीर;
घर बनाता है तो सब से पहले दरवाज़ा लगा;

हाँ समंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोच;
डूबने से पहले गहराई का अंदाज़ा लगा;

हर तरफ़ से आएगा तेरी सदाओं का जवाब;
चुप के चंगुल से निकल और एक आवाज़ा लगा;

सर उठा कर चलने की अब याद भी बाक़ी नहीं;
मेरे झुकने से मेरी ज़िल्लत का अंदाज़ा लगा;

रहम खा कर 'अर्श' उस ने इस तरफ़ देखा मगर;
ये भी दिल दे बैठने का मुझ को ख़मियाज़ा लगा।

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