arman 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

कब याद मे तेरा साथ नहीं,
कब हाथ में तेरा हाथ नहीं;

साद शुक्र की अपनी रातो में
अब हिज्र की कोई रात नहीं;

मुश्किल है अगर हालत वह,
दिल बेच आए, जा दे आए;

दिल वालो कूचा-ए-जाना में,
क्या ऐसे भी हालात नहीं;

जिस धज से कोई मकतल में गया,
वो शान सलामत रहती है;

ये जान तो आनी-जानी है,
इस जान की तो कोई बात नहीं;

मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं,
या नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ;

आशिक तो किसी का नाम नहीं,
कुछ इश्क किसी की जात नहीं;

गर बाज़ी इश्क की बाज़ी है,
ओ चाहो लगा दो दर कैसा;

गर जीत गए तो क्या कहने,
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।

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