कब याद मे तेरा साथ नहीं,
कब हाथ में तेरा हाथ नहीं;
साद शुक्र की अपनी रातो में
अब हिज्र की कोई रात नहीं;
मुश्किल है अगर हालत वह,
दिल बेच आए, जा दे आए;
दिल वालो कूचा-ए-जाना में,
क्या ऐसे भी हालात नहीं;
जिस धज से कोई मकतल में गया,
वो शान सलामत रहती है;
ये जान तो आनी-जानी है,
इस जान की तो कोई बात नहीं;
मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं,
या नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ;
आशिक तो किसी का नाम नहीं,
कुछ इश्क किसी की जात नहीं;
गर बाज़ी इश्क की बाज़ी है,
ओ चाहो लगा दो दर कैसा;
गर जीत गए तो क्या कहने,
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।
