arman 12:00:00 AM 15 Jul, 2017

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू;
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू;

बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से;
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू;

मेरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ;
तेरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू;

मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी;
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं बज़ाहिर तू;

हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है;
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू;

'फ़राज़' तूने उसे मुश्किलों में डाल दिया;
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शायर तू।

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