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arman
12:00:00 AM 16 Jun, 2017
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे;
तू बहुत देर से मिला है मुझे।
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#563 ADMIN
10:04:15 AM 11 Oct, 2016
क्या खूब लिखा है किसी ने...🖊
आगे सफर था और पीछे हमसफर था...🖊
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता...🖊
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी...🖊
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...🖊
मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते...🖊
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी मे जहर था...🖊
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते...🖊
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए...🖊
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए...🖊
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता...🖊
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता🖊
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...🖊
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर...🖊
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है...🖊
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"...🖊
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया...🖊
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा...🖊
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ...🖊
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है...🖊
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...🖊
दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...🖊
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी...🖊
भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की...🖊
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है...🖊
हंसने की इच्छा ना हो,
तो भी हसना पड़ता है...🖊
.
कोई जब पूछे कैसे हो..?
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...🖊
.
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों,
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है...🖊
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती,
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...🖊
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट, ये ढूँढ रहे हैं की
मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं...🖊
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं...🖊
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ,
कि...
पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम...🖊
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने,
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम...🖊
Good Morning
#2256 ADMIN
05:30:00 AM 01 Jan, 1970
Ⓜ kya khoob likha hai kisine
आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की... मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”
दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं।
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...
पत्थरों को मनाने में ,
फूलों का क़त्ल कर आए हम
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।
अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करे..
_▄▄_
(●_●)
╚═►
#3185 ADMIN
12:45:12 PM 01 Dec, 2017
Ⓜ kya khoob likha hai kisine
आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो, प्यास लगी थी गजब की... मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।।
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता"..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी!!!!
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया....
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा. ......
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ... हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है.
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...!!”
दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली...
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ' अपनो ' की.
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। ...!!!
हंसने की इच्छा ना हो... तो भी हसना पड़ता है...
.
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
.
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,
ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा कि जीवन में मंगल है या नहीं।
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...
पत्थरों को मनाने में , फूलों का क़त्ल कर आए हम
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।
अगर दिल को छु जाये तो शेयर जरूर करे..
_▄▄_
(●_●)
╚═►
#23279 arman
12:00:00 AM 31 May, 2017
हर तरफ से यहीं आती है सदा
बेवफ़ा को ही आज़माती है वफ़ा
होने को तो पल भर में हो जाती है
पर बाद में उम्रभर सताती है ख़ता
ग़ैरों को खुश रखने में ये ज़िन्दगी
खुद अपना ही भूल जाती है पता ।
#28360 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
कभी मुझ को साथ लेकर,
कभी मेरे साथ चल के;
वो बदल गए अचानक,
मेरी ज़िन्दगी बदल के;
हुए जिस पे मेहरबाँ,
तुम कोई ख़ुशनसीब होगा;
मेरी हसरतें तो निकलीं,
मेरे आँसूओं में ढल के;
तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है;
वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधल के;
कोई फूल बन गया है,
कोई चाँद कोई तारा;
जो चिराग़ बुझ गए हैं,
तेरी अंजुमन में जल के;
मेरे दोस्तो ख़ुदारा,
मेरे साथ तुम भी ढूँढो;
वो यहीं कहीं छुपे हैं,
मेरे ग़म का रुख़ बदल के;
तेरी बेझिझक हँसी से,
न किसी का दिल हो मैला;
ये नगर है आईनों का,
यहाँ साँस ले संभल के
#29338 Afsar
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझे;
तू बहुत देर से मिला है मुझे;
हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं;
मुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझे;
दिल धड़कता नहीं सुलगता है;
वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे;
लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ;
क़त्ल होने का हौसला है मुझे;
कौन जाने कि चाहतों में 'फ़राज़';
क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे।
#29877 arman
12:00:00 AM 16 Jun, 2017
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे;
तू बहुत देर से मिला है मुझे;
हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं;
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे;
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल;
हार जाने का हौसला है मुझे;
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ;
कत्ल होने का हौसला है मुझे;
दिल धडकता नहीं सुलगता है;
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे;
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़;
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे।
#30091 arman
12:00:00 AM 16 Jun, 2017
ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझे;
तू बहुत देर से मिला है मुझे;
हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं;
मुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझे;
दिल धड़कता नहीं सुलगता है;
वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे;
लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ;
क़त्ल होने का हौसला है मुझे;
कौन जाने कि चाहतों में 'फ़राज़';
क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे।
#34183 Rakesh
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
कभी मुझ को साथ लेकर,
कभी मेरे साथ चल के;
वो बदल गए अचानक,
मेरी ज़िन्दगी बदल के;
हुए जिस पे मेहरबाँ,
तुम कोई ख़ुशनसीब होगा;
मेरी हसरतें तो निकलीं,
मेरे आँसूओं में ढल के;
तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के,
क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है;
वही चम्पई उजाले,
वही सुरमई धुंधल के;
कोई फूल बन गया है,
कोई चाँद कोई तारा;
जो चिराग़ बुझ गए हैं,
तेरी अंजुमन में जल के;
मेरे दोस्तो ख़ुदारा,
मेरे साथ तुम भी ढूँढो;
वो यहीं कहीं छुपे हैं,
मेरे ग़म का रुख़ बदल के;
तेरी बेझिझक हँसी से,
न किसी का दिल हो मैला;
ये नगर है आईनों का,
यहाँ साँस ले संभल के।