तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ;
हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ;
कई थे लोग किनारों से देखने वाले;
मगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआ;
हमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपने;
उन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआ;
रहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों में;
यही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआ;
लगी जो आग तो सोचा उदास जंगल ने;
हवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआ;
मुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिन;
करूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ।
