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arman
12:00:00 AM 04 May, 2017
न आया तमाम उम्र आखि़र न आया
वो पल जो मेरी ज़िंदगानी बदल दे
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#1455 ADMIN
05:30:00 AM 01 Jan, 1970
कृपया सभी ध्यान दे जब से
Whattsp का Group share
Link आया है इसे share करते
ही बिना एडमिन की इजाजत
भी अपने आप Group मे जुड़ा
जा सकता है जिसका फायदा
बाहरी तत्व उठा रहे मतलब
पाकिस्तान के लोग भारत के
Groupo मे जुड़ जा रहे link
के माध्यम से तथा Group मे
आने वाली देश रक्षा , indian
Army व भारत के तमाम
गोपनीय सूचना पाकिस्तान को
पहुँचाई जा रही जो भारत के
सुरक्षा के लिए खतरनाक है
पाकिस्तान का कोड़ +92 है
जैसे भारत का +91 है
अतः सभी Group admin से
Request है कि अपने Group
से +92 ,+44,+255, +234, +34,+ 39
वाले नंबर हटाने की
कृपा करे देशहित
#28559 Rakesh
12:00:00 AM 14 Jun, 2017
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला;
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला;
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे;
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला;
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड आया था;
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला;
बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी;
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला;
खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने;
बस एक शख्स को मांगा मुझे वही ना मिला।
#28818 arman
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया;
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया;
इस एक ख़्वाब की हसरत में जल बुझीं आँखें;
वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया;
करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला;
सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया;
दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते;
ये चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया;
अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़;
बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया;
हरीम-ए-लफ़्ज़-ओ-मआनी से निस्बतें भी रहीं;
मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।
#29467 arman
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था;
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला।
#29499 arman
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला;
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला;
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे;
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला;
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था;
फ़िर उस के बाद मुझे कोई अजनबी न मिला;
ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैनें;
बस एक शख्स को माँगा मुझे वही न मिला;
बहुत अजीब है ये नजदीकियों की दूरी भी;
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।
#34860 arman
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला;
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला;
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे;
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला;
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड आया था;
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला;
बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी;
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला;
खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने;
बस एक शख्स को मांगा मुझे वही ना मिला।
#35116 Afsar
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया;
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया;
इस एक ख़्वाब की हसरत में जल बुझीं आँखें;
वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया;
करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला;
सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया;
दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते;
ये चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया;
अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़;
बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया;
हरीम-ए-लफ़्ज़-ओ-मआनी से निस्बतें भी रहीं;
मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।
#35765 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था;
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला।
#35797 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला;
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला;
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे;
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला;
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था;
फ़िर उस के बाद मुझे कोई अजनबी न मिला;
ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैनें;
बस एक शख्स को माँगा मुझे वही न मिला;
बहुत अजीब है ये नजदीकियों की दूरी भी;
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।