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GYANI
Kanpuriya
14:06:20, 24 October, 2025
ज़िंदगी के सफ़र में जो धूप सह जाता है,
मिलती मंजिल उसी को,
वही कामयाब हो पाता है।
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#2535 ADMIN
05:30:00 AM 01 Jan, 1970
एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं
वक़्त नूर को बहनूर कर देता है
थोड़े से जखम को नासूर कर देता है
वरना कोन चाहता है तुम जेसे दोस्तो से दूर रहना
वक़्त ही तो इंसान को मजबूर कर देता
एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं
ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना
एक ग़लती हज़ारो सपने जला कर राख देती है
#12503 TIPU
12:00:00 AM 19 Feb, 2017
एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं,
एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं,
ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना,
एक ग़लती हज़ारो सपने जला कर राख देती है.
#28828 arman
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए;
चिरागों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए;
मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ;
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए;
अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर;
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए;
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको;
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए;
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा;
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए;
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए।
#29423 Afsar
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
मिलने को तो ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले;
पर उनकी तबियत से अपनी तबियत नही मिली;
चेहरों में दूसरों के तुझे ढूंढते रहे दर-ब-दर;
सूरत नही मिली, तो कहीं सीरत नही मिली;
बहुत देर से आया था वो मेरे पास यारों;
अल्फाज ढूंढने की भी मोहलत नही मिली;
तुझे गिला था कि तवज्जो न मिली तुझे;
मगर हमको तो खुद अपनी मुहब्बत नही मिली;
हमे तो तेरी हर आदत अच्छी लगी "फ़राज़";
पर अफ़सोस तेरी आदत से मेरी आदत नही मिली।
#32273 Afsar
12:00:00 AM 19 Jun, 2017
एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं,
एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं
ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना
एक ग़लती हज़ारो सपने जला कर राख देती है
#35126 Afsar
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए;
चिरागों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए;
मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ;
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए;
अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर;
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए;
समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको;
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए;
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा;
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए;
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए।
#35723 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
मिलने को तो ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले;
पर उनकी तबियत से अपनी तबियत नही मिली;
चेहरों में दूसरों के तुझे ढूंढते रहे दर-ब-दर;
सूरत नही मिली, तो कहीं सीरत नही मिली;
बहुत देर से आया था वो मेरे पास यारों;
अल्फाज ढूंढने की भी मोहलत नही मिली;
तुझे गिला था कि तवज्जो न मिली तुझे;
मगर हमको तो खुद अपनी मुहब्बत नही मिली;
हमे तो तेरी हर आदत अच्छी लगी "फ़राज़";
पर अफ़सोस तेरी आदत से मेरी आदत नही मिली।