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QUOTES4WISHES
Bareilly@99
15:54:36, 26 October, 2025
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं,
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं।
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Related to this Post:
#2200 ADMIN
05:30:00 AM 01 Jan, 1970
हँसी रोक पाओ तो बोलना
बहु बरामदे में बैठे ससुर के पास खाली चाय का कप लेने गई...
तो कप लेने के लिए जैसे ही झुकी तो पाद निकल गया ।
बहु शर्म के मारे बिना कप उठाये वापस जाने लगी,
ससुर ने आवाज लगाई -
"बहु यहाँ कुछ काम था कि सिर्फ पादने आई थी...???"
😆😆😆😄😄😄😄😄😄😄😄😄
#12371 TIPU
12:00:00 AM 19 Feb, 2017
हँसी रोक पाओ तो बोलना
😄बहू बरामदे में बैठे ससुर के पास खाली चाय का कप लेने गई...
कप लेने के लिए जैसे ही झुकी.. तो गैस 💨💨 निकल गयी
बहू शर्म के मारे बिना कप उठाये वापस जाने लगी,
ससुर ने आवाज लगाई -"बहू यहाँ कुछ काम था कि सिर्फ पादने आई थी...???"
😂😆😂😆😂😆
#21948 Afsar
12:00:00 AM 13 May, 2017
प्रिय,
हर संबोधन जाने क्यूँ
बासी सा लगता है मुझे,
सदा मौन से ही
संबोधित किया है तुम्हे,
किन्तु मेरे मौन और
तुम्हारी प्रतिक्रिया के बीच
ये जो व्यस्तता के पर्वत है
बढती जाती है रोज़
इनकी ऊंचाई,
जिन्हें मैं रोज़ पोंछती हूँ
इस उम्मीद के साथ कि किसी रोज़
इनके किसी अरण्य में शकुंतला मिलेगी दुष्यंत से ,
क्यों नहीं सुन पाते हो तुम अब
नैनों की भाषा
जिनमे पढ़ लेते थे
मेरा
अघोषित आमंत्रण,
मेरी बाँहों से अधिक घेरते हैं तुम्हे
दुनिया भर के सरोकार,
और प्रेम के बोल ढल गए हैं
इन वाक्यों में
'शाम को क्या बना रही हो तुम"
तुम्हारे प्रेम पत्र
रखा है मैंने,
क्यों पीले पड़ते जा रहे हैं दिनोदिन,
और लम्बी होती जा रही है
राशन की वो लिस्ट,
ऑफिस जाते समय भूल जाते हो कुछ
और मैं बच्चों के टिफिन की
भूलभुलैया में उलझी बस मुस्कुरा
देती हूँ,
फिर किसी दिन फ़ोन पर
इतराकर पूछते हो,
"याद आ रही है मेरी"
और मैं अचकचा कर फ़ोन को
देखती हूँ ये तुम्ही हो
जो कल दुर्वासा बने लौटे थे,
और शकुन्तला झुकी थी श्राप की
प्रतीक्षा में,
फिर खो जाती हूँ मैं
रात के खाने और सुबह की
तैयारियों के घने जंगल में
सोते हुए एक छोटे बालक
से लगते हो तुम,
और तुम्हारी लटों को संवारते हुए
तुम्हे चादर ओढ़ते हुए,
अचानक पा लेती हूँ मैं
दुष्यंत की अंगूठी...
#23304 arman
12:00:00 AM 31 May, 2017
दिल में अलग सा ये शोर क्यों हैं
उलझी तेरे मेरे रिश्तो की डोर क्यों है
जरा गौर से देख तो सही तेरे हाथो में
मेरे प्यार की छोटी सी लकीर हैं
फिर तेरी उम्मीद इतनी कमजोर क्यों है
जब भी पलके बंद की हैं मेने
बस तेरा ही खयाल आया है ख्वाबो में
जरा सोच तो सही मुझ पर सिर्फ तेरा ही सरूर क्यों है
जब भी नजरें मिलायी हैं तुजसे तेरी नजर झुकी ही रही
तू इश्क़ नहीं करती मुझसे
तो तेरी आँखें चोर क्यों है
तेरे इश्क़ की गहरायी और मेरे इश्क़ की तन्हाई
बस तेरे लबो में अरसो से कैद हैं
तो फिर तू इज़हार-ए-इश्क़ से दूर क्यों है
#27878 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला;
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला;
मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक;
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला;
बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं;
वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला;
उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर;
मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला;
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए;
ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला।
#31961 Afsar
12:00:00 AM 18 Jun, 2017
तेरे इंतज़ार में यह नज़रें झुकी हैं,
तेरा दीदार करने की चाह जगी है,
न जानूँ तेरा नाम, न तेरा पता,
फिर भी न जाने क्यों
इस पागल दिल में एक अज़ब सी बेचैनी जगी है..
#34237 Afsar
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला;
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला;
मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक;
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला;
बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं;
वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला;
उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर;
मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला;
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए;
ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला।