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ADMIN
05:30:00 AM 01 Jan, 1970
जब इश्क और क्रांति का अंजाम एक ही है..
तो राँझा बनने से अच्छा है, भगत सिंह बन जाओ..
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#23304 arman
12:00:00 AM 31 May, 2017
दिल में अलग सा ये शोर क्यों हैं
उलझी तेरे मेरे रिश्तो की डोर क्यों है
जरा गौर से देख तो सही तेरे हाथो में
मेरे प्यार की छोटी सी लकीर हैं
फिर तेरी उम्मीद इतनी कमजोर क्यों है
जब भी पलके बंद की हैं मेने
बस तेरा ही खयाल आया है ख्वाबो में
जरा सोच तो सही मुझ पर सिर्फ तेरा ही सरूर क्यों है
जब भी नजरें मिलायी हैं तुजसे तेरी नजर झुकी ही रही
तू इश्क़ नहीं करती मुझसे
तो तेरी आँखें चोर क्यों है
तेरे इश्क़ की गहरायी और मेरे इश्क़ की तन्हाई
बस तेरे लबो में अरसो से कैद हैं
तो फिर तू इज़हार-ए-इश्क़ से दूर क्यों है
#27168 arman
12:00:00 AM 12 Jun, 2017
वो सज़दा ही क्या,
जिसमे सर उठाने का होश रहे;
इज़हार-ए-इश्क़ का मजा तब,
जब मैं बेचैन रहूँ और वो ख़ामोश रहे!
#27873 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
सूरज ढलते ही रख दिये उसने मेरे होठों पर होंठ,
इश्क का रोज़ा था और गज़ब की इफ्तारी
#28746 Afsar
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
एक ख़ुशी की चाह में हर ख़ुशी से दूर हुए हम;
किसी से कुछ कह भी ना सके इतने मज़बूर हुए हम;
ना आई उन्हें निभानी वफ़ा इस दौर-ए-इश्क़ में;
और ज़माने की नज़र में बेवफ़ा के नाम से मशहूर हुए हम।
#29021 Rakesh
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था;
फ़ज़ा में उड़ते परिंदे शुमार करता था;
बयान करता था दरिया के पार के क़िस्से;
ये और बात वो दरिया न पार करता था;
बिछड़ के एक ही बस्ती में दोनों ज़िंदा हैं;
मैं उस से इश्क़ तो वो मुझ से प्यार करता था;
यूँ ही था शहर की शख़्सियतों को रंज उस से;
कि वो ज़िदें भी बड़ी पुर-वक़ार करता था;
कल अपनी जान को दिन में बचा नहीं पाया;
वो आदमी के जो आहाट पे वार करता था;
सदाक़तें थीं मेरी बंदगी में जब 'अज़हर';
हिफ़ाज़तें मेरी परवर-दिगार करता था।
#31596 arman
12:00:00 AM 18 Jun, 2017
मंजिल भी तुम हो, तलाश भी तुम हो,
उम्मीद भी तुम हो, आस भी तुम हो,
कैसे कहूँ इश्क भी तुम हो और जूनूँ भी तुम ही हो,
अब जब अहसास तुम हो तो जिंदगी भी तुम ही हो..
#34230 Afsar
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
सूरज ढलते ही रख दिये उसने मेरे होठों पर होंठ,
इश्क का रोज़ा था और गज़ब की इफ्तारी।
#35044 Afsar
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
एक ख़ुशी की चाह में हर ख़ुशी से दूर हुए हम;
किसी से कुछ कह भी ना सके इतने मज़बूर हुए हम;
ना आई उन्हें निभानी वफ़ा इस दौर-ए-इश्क़ में;
और ज़माने की नज़र में बेवफ़ा के नाम से मशहूर हुए हम।
#35309 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था;
फ़ज़ा में उड़ते परिंदे शुमार करता था;
बयान करता था दरिया के पार के क़िस्से;
ये और बात वो दरिया न पार करता था;
बिछड़ के एक ही बस्ती में दोनों ज़िंदा हैं;
मैं उस से इश्क़ तो वो मुझ से प्यार करता था;
यूँ ही था शहर की शख़्सियतों को रंज उस से;
कि वो ज़िदें भी बड़ी पुर-वक़ार करता था;
कल अपनी जान को दिन में बचा नहीं पाया;
वो आदमी के जो आहाट पे वार करता था;
सदाक़तें थीं मेरी बंदगी में जब 'अज़हर';
हिफ़ाज़तें मेरी परवर-दिगार करता था।