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Afsar
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
सूरज ढलते ही रख दिये उसने मेरे होठों पर होंठ,
इश्क का रोज़ा था और गज़ब की इफ्तारी।
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Related to this Post:
#993 ADMIN
05:30:00 AM 01 Jan, 1970
होके मायूस ना यूँ शाम की तरह ढलते रहिये
*जिदंगी एक भोर है*
*सूरज की तरह निकलते रहिये*
*ठहरोगे एक पाँव पर तो थक जाओगे*
*धीरे धीरे ही सही मगर राह पर चलते रहिये*
🌺🌺सुप्रभात🌺🌺
🙏🏻 *आपका दिन शुभ हो*🙏🏻
#4417 ADMIN
11:20:40 AM 02 Sep, 2017
🐾☀🐾
✍🏻होकर मायूस न यूँ
शाम की तरह ढलते रहिये
जिंदगी एक भोर है
सूरज की तरह निकलते रहिये
ठहरोगे एक पाँव पर तो थक जाओगे
धीरे धीरे ही सही मगर
लक्ष्य की ओर चलते रहिये।
*"🌹हँसते रहिये हंसाते रहिये🌹"*
*"सुप्रभात"*
#15365 TIPU
12:00:00 AM 09 Mar, 2017
🐾☀🐾
*✍🏻होकर मायूस न यूँ*
*शाम की तरह ढलते रहिये*
*जिंदगी एक भोर है*
*सूरज की तरह निकलते रहिये*
*ठहरोगे एक पाँव पर तो थक जाओगे*
*धीरे धीरे ही सही मगर*
*लक्ष्य की ओर चलते रहिये।*
*"🌹हँसते रहिये हंसाते रहिये🌹"*
🌹🙏 सुप्रभात 🙏🌹
*_🍁🙏🏻आपका दिन मंगलमय हो🙏🏻🍁_*
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃
#27873 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
सूरज ढलते ही रख दिये उसने मेरे होठों पर होंठ,
इश्क का रोज़ा था और गज़ब की इफ्तारी
#29057 Rakesh
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
कहाँ क़ातिल बदलते
हैं फ़क़त चेहरे बदलते हैं;
अजब अपना सफ़र है
फ़ासले भी साथ चलते हैं;
बहुत कमजर्फ़ था जो
महफ़िलों को कर गया वीराँ;
न पूछो हाले चाराँ
शाम को जब साए ढलते हैं;
वो जिसकी रोशनी कच्चे
घरों तक भी पहुँचती है;
न वो सूरज निकलता है,
न अपने दिन बदलते हैं;
कहाँ तक दोस्तों की
बेदिली का हम करें मातम;
चलो इस बार भी हम
ही सरे मक़तल निकलते हैं;
हम अहले दर्द ने ये राज़
आखिर पा लिया 'जालिब';
कि दीप ऊँचे मकानों में
हमारे खून से जलते हैं।
#35582 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
कहाँ क़ातिल बदलते हैं फ़क़त चेहरे बदलते हैं;
अजब अपना सफ़र है फ़ासले भी साथ चलते हैं;
बहुत कमजर्फ़ था जो महफ़िलों को कर गया वीराँ;
न पूछो हाले चाराँ शाम को जब साए ढलते हैं;
वो जिसकी रोशनी कच्चे घरों तक भी पहुँचती है;
न वो सूरज निकलता है, न अपने दिन बदलते हैं;
कहाँ तक दोस्तों की बेदिली का हम करें मातम;
चलो इस बार भी हम ही सरे मक़तल निकलते हैं;
हम अहले दर्द ने ये राज़ आखिर पा लिया 'जालिब';
कि दीप ऊँचे मकानों में हमारे खून से जलते हैं।