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Afsar
12:00:00 AM 04 May, 2017
हर इक मुश्किल बदल जाती है आसानी की सूरत में,
अगर दिल आजमाइश के लिये तैयार हो जाये।
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#28121 Afsar
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू;
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू;
बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से;
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू;
मेरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ;
तेरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू;
मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी;
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं बज़ाहिर तू;
हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है;
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू;
'फ़राज़' तूने उसे मुश्किलों में डाल दिया;
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शायर तू।
#28976 Rakesh
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे;
शमा से कहना कि जलना छोड़ दे;
मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं;
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे;
तुझसे उम्मीदे - वफ़ा बेकार है;
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे;
मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं;
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे;
कुछ तो कर आदाबे - महफ़िल का लिहाज़;
यार ये पहलू बदलना छोड़ दे।
#29026 Rakesh
12:00:00 AM 15 Jun, 2017
कौन कहता है कि
मौत आयी तो मर जाऊँगा;
मैं तो दरिया हूं,
समंदर में उतर जाऊँगा;
तेरा दर छोड़ के
मैं और किधर जाऊँगा;
घर में घिर जाऊँगा,
सहरा में बिखर जाऊँगा;
तेरे पहलू से जो उठूँगा
तो मुश्किल ये है;
सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा,
जिधर जाऊँगा;
अब तेरे शहर में आऊँगा
मुसाफ़िर की तरह;
साया-ए-अब्र की
मानिंद गुज़र जाऊँगा;
तेरा पैमान-ए-वफ़ा
राह की दीवार बना;
वरना सोचा था कि
जब चाहूँगा, मर जाऊँगा;
ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं
'नदीम';
बुझ तो जाऊँगा मगर,
सुबह तो कर जाऊँगा।
#34465 arman
12:00:00 AM 15 Jul, 2017
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू;
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू;
बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से;
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू;
मेरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ;
तेरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू;
मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी;
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं बज़ाहिर तू;
हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है;
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू;
'फ़राज़' तूने उसे मुश्किलों में डाल दिया;
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शायर तू।
#35266 Afsar
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे;
शमा से कहना कि जलना छोड़ दे;
मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं;
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे;
तुझसे उम्मीदे - वफ़ा बेकार है;
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे;
मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं;
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे;
कुछ तो कर आदाबे - महफ़िल का लिहाज़;
यार ये पहलू बदलना छोड़ दे।
#35314 arman
12:00:00 AM 16 Jul, 2017
कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा;
मैं तो दरिया हूं, समंदर में उतर जाऊँगा;
तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा;
घर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगा;
तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है;
सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगा;
अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह;
साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा;
तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना;
वरना सोचा था कि जब चाहूँगा, मर जाऊँगा;
ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं 'नदीम';
बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा।