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Afsar
12:00:00 AM 08 May, 2017
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
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Related to this Post:
#8691 Aman
12:00:00 AM 15 Feb, 2017
लड़की – ये लो पेन ड्राइव इसमें फेसबुक डाल दो ..
.
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( लडके ने हैरत भरी निगाह से लड़की को घूरा )
.
.
लड़की – ऐसे क्या घूर रहे हो , 2 G.B. में नहीं आएगा क्या ....??
#8868 TIPU
12:00:00 AM 15 Feb, 2017
लड़की – ये लो पेन ड्राइव इसमें फेसबुक डाल दो ..
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( लडके ने हैरत भरी निगाह से लड़की को घूरा )
.
.
लड़की – ऐसे क्या घूर रहे हो , 2 G.B. में नहीं आएगा क्या ....??
#14956 Aman
12:00:00 AM 03 Mar, 2017
इजाज़त भी नहीं देते हो तुम नज़रें मिलाने की...
और दिल तुमको निगाहों में बसाने पे तुला है..
#20219 Aman
12:00:00 AM 03 May, 2017
दीवाने तेरे हैं, इस बात से इनकार नहीं;
कैसे कहें कि हमें आपसे प्यार नहीं;
कुछ तो कसूर है आपकी निगाहों का;
हम अकेले तो गुनेहगार नहीं।
#20980 Rakesh
12:00:00 AM 06 May, 2017
किसी के चेहरे को कब तक निगाह में रखूँ
सफ़र में एक ही मंज़र तो रह नहीं सकता
#21953 Afsar
12:00:00 AM 13 May, 2017
इन अलसाई आँखों ने
रात भर जाग कर खरीदे हैं
कुछ बंजारा सपने
सालों से पोस्टपोन की गई
उम्मीदें उफान पर हैं
कि पूरे होने का यही वक्त
तय हुआ होगा शायद
अभी नन्हीं उँगलियों से जरा ढीली ही हुई है
इन हाथों की पकड़
कि थिरक रहे हैं वे कीबोर्ड पर
उड़ाने लगे हैं उमंगों की पतंगे
लिखने लगे हैं बगावतों की नित नई दास्तान,
सँभालो उन्हे कि घी-तेल लगा आँचल
अब बनने को ही है परचम
कंधों को छूने लगी नौनिहालों की लंबाई
और साथ बढ़ने लगा है सुसुप्त उम्मीदों का भी कद
और जिनके जूतों में समाने लगे है नन्हें नन्हें पाँव
वे पाँव नापने को तैयार हैं
यथार्थ के धरातल का नया सफर
बेफिक्र हैं कलमों में घुलती चाँदी से
चश्मे के बदलते नंबर से
हार्मोन्स के असंतुलन से
अवसाद से अक्सर बदलते मूड से
मीनोपाज की आहट के साइड एफेक्ट्स से
किसे परवाह है,
ये मस्ती, ये बेपरवाही,
गवाह है कि बदलने लगी है ख्वाबों की लिपि
वे उठा चुकी हैं दबी हँसी से पहरे
वे मुक्त हैं अब प्रसूतिगृहों से,
मुक्त हैं जागकर कटी नेपी बदलती रातों से,
मुक्त हैं पति और बच्चों की व्यस्तताओं की चिंता से,
ये जो फैली हुई कमर का घेरा है न
ये दरअसल अनुभवों के वलयों का स्थायी पता है
और ये आँखों के इर्द गिर्द लकीरों का जाल है
वह हिसाब है उन सालों का जो अनाज बन
समाते रहे गृहस्थी की चक्की में
ये चर्बी नहीं
ये सेलुलाइड नहीं
ये स्ट्रेच मार्क्स नहीं
ये दरअसल छुपी, दमित इच्छाओं की पोटलियाँ हैं
जिनकी पदचापें अब नई दुनिया का द्वार ठकठकाने लगीं हैं
ये अलमारी के भीतर के चोर-खाने में छुपे प्रेमपत्र हैं
जिसकी तहों में असफल प्रेम की आहें हैं
ये किसी कोने में चुपके से चखी गई शराब की घूँटें है
जिसके कड़वेपन से बँधी हैं कई अकेली रातें,
ये उपवास के दिनों का वक्त गिनता सलाद है
जिसकी निगाहें सिर्फ अब चाँद नहीं सितारों पर है,
ये अंगवस्त्रों की उधड़ी सीवनें हैं
जिनके पास कई खामोश किस्से हैं
ये भगोने में अंत में बची तरकारी है
जिसने मैगी के साथ रतजगा काटा है
अपनी पूर्ववर्तियों से ठीक अलग
वे नहीं ढूँढ़ती हैं देवालयों में
देह की अनसुनी पुकार का समाधान
अपनी कामनाओं के ज्वार पर अब वे हँस देती हैं ठठाकर,
भूल जाती हैं जिंदगी की आपाधापी
कर देती शेयर एक रोमांटिक सा गाना,
मशगूल हो जाती हैं लिखने में एक प्रेम कविता,
पढ़ पाओ तो पढ़ो उन्हें
कि वे औरतें इतनी बार दोहराई गई कहानियाँ हैं
कि उनके चेहरों पर लिखा है उनका सारांश भी,
उनके प्रोफाइल पिक सा रंगीन न भी हो उनका जीवन
तो भी वे भरने को प्रतिबद्ध हैं अपने आभासी जीवन में
इंद्रधनुष के सातों रंग,
जी हाँ, वे फेसबुक पर मौजूद चालीस साला औरतें हैं.
#26808 arman
12:00:00 AM 11 Jun, 2017
आँख में आँख डालकर बात तो करके देखता;
इतना भी एतमाद उसे अपनी निगाह पर नहीं।
#26897 arman
12:00:00 AM 12 Jun, 2017
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया;
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का!
#27793 Rakesh
12:00:00 AM 13 Jun, 2017
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह,
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है।