अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस;
लब खोले और उसने कहा बस;
तब से हालत ठीक नहीं है;
मीठा मीठा दर्द उठा बस;
सारी बातें खोल के रखो;
मैं हूं तुम हो और खुदा बस;
तुमने दुख में आंख भिगोई;
मैने कोई शेर कहा बस;
वाकिफ़ था मैं दर्द से उसके;
मिल कर मुझसे फूट पड़ा बस;
इस सहरा में इतना कर दे;
मीठा चश्मा, पेड़, हवा बस।
