ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ;
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ;
महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गई;
फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ;
मुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ है;
मेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआ;
दर्द की कायनात में मुझ से भी रौशनी रही;
वैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ;
सब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गई;
और मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ।
