Afsar 12:00:00 AM 15 Jun, 2017

मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ;
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ;

कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर;
ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ;

सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें;
तेरे बारे में न सोचूं तो अकेला हो जाऊँ;

चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन;
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ;

बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं;
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ;

शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती;
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊँ।

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